प्रयागराज,दिव्या टाइम्स इंडिया। महाकुंभ में नागा साधु हमेशा से लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचते हैं। नागा साधुओं की विचित्र दुनिया ज्यादातर लोगों के लिए चर्चा का विषय है क्योंकि सांसरिक मोह माया को त्याग चुके नागा साधु एक अलग तरह का जीवन जीते हैं। नागा साधु 17 श्रृंगार करके शिव भक्ति में लीन रहते हैं। नागा साधुओं के बारे में तो लोग फिर भी कुछ जानकारी रखते हैं लेकिन क्या आप महिला नागा साधुओं की रहस्यमय दुनिया के बारे में जानते हैं? आइए, जानते हैं महिला नागा साधुओं के रहस्यमय संसार के बारे में।

पुरुष नागा साधुओं से इनका जीवन अलग होता है। महिला नागा साधु सांसारिक जीवन छोड़कर आध्यात्मिक जीवन अपना लेती हैं। ये गृहस्थ जीवन त्याग देती हैं। इनका दिन पूजा-पाठ से शुरू और खत्म होता है। महिला नागा साधु शिव और पार्वती के अलावा माता काली की भक्त भी मानी जाती हैं। पूजा-पाठ इनके जीवन का मुख्य आधार है। कई चुनौतियों का सामना इनको करना पड़ता है।

महिलाओं के लिए नागा साधु बनने का रास्ता बेहद कठिन है। इसमें 10 से 15 साल तक कठोर ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना पड़ता है। गुरु को अपनी योग्यता और ईश्वर के प्रति समर्पण का प्रमाण देना होता है। महिला नागा साधुओं को जीवित रहते हुए अपना पिंडदान और मुंडन भी अनिवार्य है। नागा साधु बनने की प्रक्रिया में महिलाओं को कई कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है।

महिला नागा साधु बनने के बा, सभी साधु-साध्वियां उन्हें आदर से ‘माता’ कहती हैं। पुरुष नागा साधुओं में दो प्रकार होते हैं वस्त्रधारी और दिगंबर। यह उनका चयन होता है कि उन्हें शरीर पर कुछ वस्त्र धारण करना है या फिर पूरी तरह से निर्वस्त्र ही रहना है लेकिन महिला नागा साधुओं के लिए यह नियम है कि उन्हें केसरिया वस्त्र धारण करना ही होगा। वे दिगंबर नहीं रह सकतीं। कुंभ के दौरान महिला नागा साधुओं के लिए माई बाड़ा बनाया जाता है, जिनमें सभी महिला नागा साधु माताएं रहती हैं।

कुंभ मेले में महिला नागा साधु भी शामिल होती है। वे किसी भी अवस्था में दिगंबर नहीं रह सकतीं। महिला नागा साध्वियां केसरिया रंग के बिना सिले वस्त्र पहनती हैं। इस वस्त्र की वजह से वे पीरियड्स में भी एक छोटा वस्त्र बहाव के स्थान पर लगा लेती हैं। साथ ही पीरियड्स के दौरान, वह गंगा स्नान नहीं करतीं, बस गंगा जल छिड़क लेती हैं।

By DTI