देहरादून/ऋषिकेश। हर्षिता। उत्तराखंड में प्रबल मानसून और कई स्थानों पर बादल फटने की घटनाओं ने व्यापक तबाही मचाई है। देहरादून, ऋषिकेश, चमोली, उत्तरकाशी और धराली सहित कई जिलों में जलस्तर अचानक बढ़ने से पुल, सड़कें और आवासीय क्षेत्र प्रभावित हुए। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार कई लोग मारे गए हैं और कुछ अभी भी लापता हैं; राहत व बचाव कार्य जारी है।
नदियों का उफान — विनाश के स्वरूप
भारी बारिश के कारण पहाड़ी नदियाँ उफान पर आ गईं और कई स्थानों पर पानी तटबंधों को पार कर गया। कई गांवों का संपर्क कट गया, कृषि क्षेत्र और स्थानीय बुनियादी संरचनाओं को भारी क्षति हुई। स्थानीय प्रशासन तथा आपदा प्रबंधन एजेंसियां प्रभावित इलाकों में राहत कार्य चला रही हैं।
गंगा किनारे रख-रखाव पर उठे गंभीर सवाल
सिंचाई विभाग के सूत्रों एवं स्थानीय अधिकारियों का कहना है कि मैदानी इलाकों में मानसून से पहले गंगा और अन्य नदियों के किनारों पर आवश्यक रख-रखाव और तटबंधों की मरम्मत पर्याप्त रूप से नहीं हो पाई। ऋषिकेश तथा हरिद्वार जैसे तटीय इलाकों में समय पर नालों की सफाई, तटबंधों की मजबूती और बहाव मार्ग सुनिश्चित करने के काम अधूरे रहे। अधिकारियों ने बताया कि इन कार्यों में देरी से नदियों के बहाव पर नियंत्रण करना मुश्किल हो गया।
इसी क्रम में यह भी सामने आया कि हरिद्वार क्षेत्र में रख-रखाव से जुड़े कई कार्य लंबित रहे, जबकि अन्य नदियों में खनन की अनुमति न दिए जाने से वे पहले से ही पत्थरों और मलबे से भरी हुई थीं। जब ऊपर से बादल फटने और सैलाब की स्थिति बनी तो इन नदियों ने विकराल रूप धारण कर लिया। इसका असर देहरादून और ऋषिकेश तक देखने को मिला, जहाँ भारी तबाही हुई।
किसी के विरोध या दावे के कारण कार्य रुकने की सूचनाएँ — तटस्थ वर्णन
स्थानीय स्रोतों और विभागीय जानकारियों के हवाले से यह भी सामने आया है कि गंगा के संरक्षण का दावा करने वाले कुछ व्यक्तियों द्वारा दिए गए विरोध या आपत्तियों के कारण कुछ स्थानों पर तटबंधों और बहाव नियंत्रण से जुड़े कार्य समय पर नहीं हो पाए।
विशेषज्ञों का निष्कर्ष
जल संसाधन और आपदा प्रबंधन विशेषज्ञों का कहना है कि नदियों के बहाव क्षेत्र का समय से करावल और तटबंधों का नियमित निरीक्षण-रखरखाव महत्त्वपूर्ण होता है। विशेषज्ञों के अनुसार, यदि समय रहते नदियों के बहाव मार्ग, तटबंध और निकासी नालियों का समुचित आदेश दिया जाता तथा कानूनी एवं प्रशासनिक प्रक्रियाओं को शीघ्रता से पूरा किया जाता, तो नुकसान को कम किया जा सकता था।
प्रशासन की कार्रवाई और प्रतिक्रिया की माँग
राज्य सरकार ने प्रभावित जिलों में राहत तथा पुनर्वास कार्यों के निर्देश दिए हैं। मुख्यमंत्री और संबंधित विभागों की तरफ से समीक्षा बैठकें जारी बताई जा रही हैं; वहीं स्थानीय स्तर पर बचाव कार्यों में सेना, NDRF और राज्य आपदा प्रबंधन टीम सक्रिय हैं। विपक्षी दलों और नागरिक समूहों ने भी तटबंधों तथा गंगा के रख-रखाव के मुद्दे पर जवाब माँगा है और कहा गया है कि जांच कर आवश्यक जिम्मेदारों को जवाबदेह ठहराना चाहिए।
आगे क्या अपेक्षित है
अधिकारियों को प्राथमिकता के तौर पर प्रभावित लोगों को तुरंत आश्रय, चिकित्सा सहायता और पुनर्वास मुहैया कराना होगा। साथ ही, मौसम विभाग की भविष्यवाणियों के आधार पर निगरानी तेज करनी होगी और नदियों के बहाव को नियंत्रित करने के लिए तकनीकी व कानूनी पहल की आवश्यकता है।