डी टी आई न्यूज़।अफगानिस्तान के हिंदूकुश से लेकर तिब्बत के पठार और नेपाल के हिमालय तक हर साल हजारों भूकंप आएंगे. इसे न तो कोई रोक सकता है. न ही इससे बचा जा सकता है. बस एक ही तरीका है कि हमें पहले जानकारी मिल जाए. इससे भी कोई फायदा नहीं होगा. क्योंकि हमारी जमीन लगातार यूरोप और चीन को धक्का दे रही है. अब जिस दिन यूरोप या चीन की जमीन ने वापस रिएक्ट किया तो यहां बड़ी आपदा आएगी.।ये भूकंप इसलिए आ रहे हैं क्योंकि भारतीय टेक्टोनिक प्लेट (Indian Tectonic Plate) लगातार यूरेशियन (Eurasian) और तिब्बतन प्लेट (Tibetan Plate) को दबा रही है. अब दो चीजें जब आपस में मिलती हैं या टकराती हैं तो नुकसान होता ही है. ये सबकुछ धरती की ऊपरी परत के ठीक नीचे हो रहा है.

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धरती की पहली परत यानी क्रस्ट की गहराई 5 से 70 किलोमीटर है. लेकिन अफगानिस्तान में जो भूकंप आया वो 156 किलोमीटर की गहराई में बताया जा रहा है. यानी हमारी धरती की ऊपरी परत से दोगुना नीचे. बात स्पष्ट है कि भारतीय प्लेट ने यूरेशियन या तिब्बत प्लेट को टक्कर दी. या फिर उन दोनों में से किसी ने भारतीय प्लेट को दबाया है.।

पूरे यूरोप और एशिया में सबसे ज्यादा फॉल्ट लाइन्स हिमालय और हिंदूकुश में हैं, जो बेहद संवेदनशील हैं. IIT Roorkee के अर्थ साइंसेज विभाग के साइंटिस्ट प्रो. कमल ने बताया कि पाकिस्तान से लेकर भारत के उत्तर-पूर्व के राज्यों तक हिमालय की पूरी बेल्ट में भूकंप का आना बेहद सामान्य घटना है. इतनी ज्यादा मात्रा में भूकंप का आना मतलब ये है कि टेक्टोनिक प्लेट्स के अंदर मौजूद प्रेशर रिलीज हो रहा है. हाल ही में एक नया नक्शा जारी हुआ है, जिसमें भारत के ऊपर हिमालय के इलाके में हजारों फॉल्ट लाइन्स हैं. इन फॉल्ट लाइन्स में होने वाली हल्की हलचल भी भारतीय प्रायद्वीप को हिला देती है.

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इंडियन – यूरेशियन – तिब्बतन प्लेट में चल रही कुश्ती

आप इसे ऐसे समझें अगर मैं लगातार आपको धक्का देता रहूं. पर आपके पीछे एक दीवार है. जो आपको पीछे जाने नहीं दे रहा है. मेरे धक्के से लगातार आपके शरीर में ऊर्जा स्टोर हो रही है. जिसे आप एक दबाव की तरह महसूस कर रहे हैं. आपको दर्द हो रहा है. बेचैनी और उलझन भी होगी. ये सभी रिएक्शन एक एनर्जी स्टोर होने की वजह से होती है. आखिरकार आप इस एनर्जी से छुटकारा पाने के लिए रिएक्ट करेंगे. मुझे वापस धक्का देंगे या किसी तरह से मेरे सामने से हटेंगे. बस यही हालत बनी हुई है इंडियन, यूरेशियन और तिब्बत टेक्टोनिक प्लेट के बीच.असल में इंडियन टेक्टोनिक प्लेट हर साल 15 से 20 मिलिमीटर तिब्बतन प्लेट की तरफ बढ़ रहा है.

इतना बड़ा जमीन का टुकड़ा किसी अन्य बड़े टुकड़े को धकेलेगा, तो कहीं न कहीं तो ऊर्जा स्टोर होगी. तिब्बत की प्लेट खिसक नहीं पा रही हैं. इसलिए दोनों प्लेटों के नीचे मौजूद ऊर्जा निकलती है. ये ऊर्जा छोटे-छोटे भूकंपों के रूप में निकलती है, तो उससे घबराने की जरुरत नहीं है. जब तेजी से ऊर्जा निकलती है तो बड़ा भूकंप आता है.
इस थ्रीडी नक्शे में आप देख सकते हैं कि कैसे हिमालय भारत के ऊपर एक मजबूत दीवार बनकर खड़ा है. लेकिन उसके नीचे बहुत ही ज्यादा एनर्जी स्टोर हो रहा है, जो किसी दिन भयानक भूकंप लेकर आएगा।

मिल जाएंगे सारे महाद्वीप, बन जाएगा सुपरकॉन्टीनेंट

एक दिन ऐसे आएगा जब सारे महाद्वीप मिल जाएंगे. ये मिलकर एक सुपरकॉन्टीनेंट बना देंगे. लेकिन ये होने में करोड़ों साल लगेंगे. तब तक इंसानियत रहेगी या नहीं ये नहीं कह सकते. हिमालय के आसपास बहुत ज्यादा एनर्जी स्टोर है. ये धीरे-धीरे रिलीज होती रहे तो बेहतर है. एकसाथ निकलेगी तो भयानक तबाही होगी. क्योंकि इतनी ऊर्जा को भारत, पाकिस्तान, चीन, नेपाल समेत कई एशियाई देशों की ऊपरी जमीन सह नहीं पाएगी.भूकंप कब आएंगे, कोई नहीं बता सकता

भूकंप कब आएंगे इसका पता कोई नहीं कर सकता. लेकिन हम अर्ली वॉर्निंग सिस्टम लगा सकते हैं. ताकि अगर कहीं भूकंप आ रहा है तो लोगों को सही समय पर सुरक्षित स्थानों पर जाने की मोहलत दे सकें. हाल ही में आए नेपाल के भूकंपों की पहली लहर की सूचना आईआईटी रुड़की में लगे अर्ली वॉर्निंग सिस्टम को 30 सेकेंड बाद ही मिल गई थी. इन भूकंपों की वजह तिब्बतन प्लेट का रेजिस्ट करना है.

दिल्ली में 5 तीव्रता का भूकंप, 10 मिनट में लखनऊ हिला देगा

अगर भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 5 से ज्यादा है तो उसकी पहली लहर 10 मिनट में 500 किलोमीटर तक फैल जाती है. यानी दिल्ली में भूकंप का केंद्र बनता है तो लखनऊ तक भूकंप की पहली लहर 10 मिनट में पहुंच जाएगी. ये जरूरी नहीं रिक्टर पैमाने पर उसकी तीव्रता पांच ही रहे. वह कम होती चली जाती है. हल्के झटके मध्य भारत के भोपाल तक महसूस किये जा सकते हैं. टेक्टोनिक प्लेटों के हिलने, टकराने, चढ़ाव, ढलाव से लगातार प्लेटों के बीच तनाव बनता है. ऊर्जा बनती है. अगर हल्के-फुल्के भूकंप आते रहते हैं, तो ये ऊर्जा रिलीज होती रहती है. ऐसे में बीच-बीच में बड़े भूकंपों के आने की आशंका रहती है. अगर ऊर्जा का दबाव ज्यादा हो जाता है और यह एकसाथ तेजी से निकलने का प्रयास करता है, तो भयानक भूकंप आ सकते हैं.। पूरी दुनिया में सात बड़ी टेक्टोनिक प्लेट्स हैं, जिनपर महाद्वीप बसे हैं. ये एकदूसरे से टकराती-धकेलती रहती हैं.

दिल्ली-NCR के लोगों को ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है

दिल्ली-NCR भूकंप के पांचवें और चौथे जोन में है. यहां के लोगों को सतर्क रहने की जरुरत है. क्योंकि हम भूकंप को न रोक सकते हैं, न टाल सकते हैं. इसलिए जरूरी है कि दिल्ली-एनसीआर सहित पूरे देश में भूकंप से संबंधित अर्ली वॉर्निंग सिस्टम लगाए जाए. पाकिस्तान के हिंदूकुश में भूकंप आता है तो हमें 5 मिनट बाद पता चलता है कि भूकंप आया है. यानी एक लहर आती है. अगर हमारे पास एक सिग्नल आता है कि भूकंप आ गया है, इस इलाके को यह इतनी देर में हिला देगा. तो इसे कहते हैं अर्ली वॉर्निंग. हम इसके जरिए लोगों को बचा सकते हैं. उत्तराखंड में हमने पहला ऐसा सिस्टम लॉन्च किया है. सरकार ऐसे सिस्टम लगाने का प्रयास पूरी तरह से कर रही है.
IIT रूड़की ने विकसित किया भूकंप अर्ली वॉर्निंग

IIT Roorkee ने अर्ली वॉर्निंग सिस्टम को लेकर एक एप विकसित किया है. इसका नाम है उत्तराखंड भूकंप अलर्ट (Uttarakhand Bhookamp Alert). इस एप में एक अलार्म है, जो भूकंप आने पर बजेगा. यानी जैसे ही अलार्म बजे आप तुरंत सुरक्षित स्थानों पर चले जाइए. इसके अलावा अर्ली वॉर्निंग नोटिफिकेशन मैसेज भी आएंगे. क्योंकि उत्तराखंड में अगर भूकंप आता है तो Delhi-NCR के लोगों को असर हो सकता है. लोग इस एप को प्लेस्टोर या एपल आईस्टोर से डाउनलोड कर सकते हैं.

भारत में हैं भूकंप के पांच जोन, इस हिस्से में ज्यादा खतरा

पांचवें जोन में देश के कुल भूखंड का 11 फीसदी हिस्सा आता है. चौथे जोन में 18 फीसदी और तीसरे और दूसरे जोन में 30 फीसदी. सबसे ज्यादा खतरा जोन 4 और 5 वाले इलाकों को है. एक ही राज्य के अलग-अलग इलाके कई जोन में आ सकते हैं. सबसे खतरनाक जोन है पांचवां इस जोन में जम्मू और कश्मीर का हिस्सा (कश्मीर घाटी), हिमाचल प्रदेश का पश्चिमी हिस्सा, उत्तराखंड का पूर्वी हिस्सा, गुजरात में कच्छ का रण, उत्तरी बिहार का हिस्सा, भारत के सभी पूर्वोत्तर राज्य, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह शामिल हैं.चौथे जोन में जम्मू और कश्मीर के शेष हिस्से, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के बाकी हिस्से, हरियाणा के कुछ हिस्से, पंजाब के कुछ हिस्से, दिल्ली, सिक्किम, उत्तर प्रदेश के उत्तरी हिस्से, बिहार और पश्चिम बंगाल का छोटा हिस्सा, गुजरात, पश्चिमी तट के पास महाराष्ट्र का कुछ हिस्सा और पश्चिमी राजस्थान का छोटा हिस्सा इस जोन में आता है.
तीसरे जोन में आता है केरल, गोवा, लक्षद्वीप समूह,और पंजाब के बचे हुए हिस्से, पश्चिम बंगाल का कुछ इलाका, पश्चिमी राजस्थान, मध्यप्रदेश, बिहार का कुछ इलाका, झारखंड का उत्तरी हिस्सा और छत्तीसगढ़. महाराष्ट्र, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और कर्नाटक का कुछ इलाका. जोन-2 में आते है राजस्थान, हरियाणा, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु का बचा हुआ हिस्सा. पहले जोन में कोई खतरा नहीं होता. इसलिए हम उसका जिक्र नहीं कर रहे हैं.।

By DTI