ईद-उल-फितर पर विशेष,इमरान देेेभक्त की रिपोर्ट
माह के तीस रोजे(उपवास) की आध्यात्मिक यात्रा के बाद आज ईद का चांद नजर आते ही कल ईद-उल-फितर का त्यौहार मनाया जाएगा।कोरोना महामारी के चलते सरकार द्वारा दी गई गाइडलाइन का पालन करते हुए पहले ही ऐलान किया जा चुका है कि ईदगाह तथा मस्जिदों में पांच-पांच लोग ही ईद की नमाज अदा कर सकेंगे।पवित्र रमजान इस्लामी कैलेंडर का नौवां महीना है।इस महीने के गुजरने के बाद शव्वाल की पहली तारीख को ईद-उल-फितर मनाई जाती है। ईद के दिन नमाज से पहले घर में खजूर या कोई भी मीठी चीज खाते हैं,क्योंकि यह भी सुन्नत (पैगंबर मोहम्मद साहब) के हुक्म का अनुसरण करना है।ईद पैगंबर हजरत मोहम्मद(स.) के जमाने से मनाई जाती है।

यह वह महीना भी है, जब पवित्र कुरान शरीफ नाजिल यानी अवतरण हुआ था,इसलिए पूरे महीने लोग पवित्र कुरान शरीफ की तिलावत (पाठ) करते हैं।पांच वक्त की नमाज के अलावा विशेष नमाज तरावीह भी पढ़ी जाती है।इस्लाम की मान्यता के अनुसार रमजान महीने की 27 वीं रात यानी शबे कद्र को कुरान पाक नाजिल हुआ।यही वजह है कि इस महीने हर एक मोमिन को कम से कम एक बार पूरी कुरान पढ़ने की हिदायत दी जाती है।हर एक रोजेदार के लिए जरूरी है कि अल्लाह की इस तौफिक को पाने के लिए यह जरूरतमंदों को फितरा दे,इसलिए ईद को ईद-उल-फितर के नाम से भी जाना जाता है,वैसे जकात (दान),सदका (पवित्र कमाई) और खैरात (भिक्षा-मुफ्त में अन्य वस्त्र बांटना) दी जाती है। इसके अलावा आचरण संयमित और पवित्र रखें।नेक बात को सच तस्लीम (स्वीकार) करें और जानें भी,माने भी।एक बात पवित्र कुरान शरीफ में बार-बार कही गई है,वह दान,दक्षिणा और शबाब यानी (पुण्य) के कार्य। इसी तरह से पवित्र कुरान शरीफ में सुलह करने वालों और शांति की राह पर चलने वालों की बेहद प्रशंसा की गई है।

कहा गया है कि ऐसे लोगों को खुदा बेहद पसंद करता है,जबकि फसाद करने वालों,धोखा देने वालों,झूठ बोलने वालों और चुगली करने वालों के लिए बार-बार सख्त बातें कही गई है।यहां तक कहा गया है कि फितना करने वालों,नफरत फैलाने वालों के साथ सख्त रवैया अपनाना जरूरी है।खुशी के दिन ईद से पहले रोजों और इबादत के इस महीने में मनुष्यता का पाठ भी पढ़ाया जाता है।उस पर अमल करना भी सिखाया जाता है,जब आप यह है सब करते हैं,तब आप की वास्तविक ईद मानी जाती है।रमजान की समाप्ति ईद के त्यौहार की खुशी को लेकर आती है।नए कपड़ों पर इत्र भी लगाया जाता है तथा सिर पर टोपी पहनी जाती है,इसके बाद लोग अपने-अपने घरों से नमाजे ईद पढ़ने के लिए ईदगाह या मस्जिदों की ओर जाते हैं।नमाज के बाद इमाम साहब उनको संबोधित करते हैं,जिनमें बताया जाता है कि अल्लाह एक है और उसकी बड़ी कुदरत है।

उसने इस संसार को बनाया है और हम सब को पैदा किया है।मरने के बाद हम सब को अल्लाह के सामने जाना है,तो हमें अच्छे कर्म करने चाहिए।अल्लाह की बात मान कर और उसके भेजे हुए नबी हजरत मोहम्मद (स.) की बातों को सच्चे दिल से अपनाना चाहिए।अपने मन को साफ रखना और अल्लाह की इबादत के साथ उसके बंदों से अच्छा व्यवहार करना ही ईद का सही अर्थ है।गत वर्ष की तरह इस साल भी कोरोना महामारी के कारण सरकार की गाइडलाइन के चलते पूरे रमजान शरीफ में रोजेदारों ने सोशल डिस्टेंसिंग में रहकर मास्क का प्रयोग करते हुए मस्जिदों में इबादत की और इस महामारी क्या खात्मे के विशेष दुआएं भी की।

By DTI