काठगढ़, दिव्या टाइम्स इंडिया। हिमाचल प्रदेश को यूं ही देवभूमि नहीं कहा जाता। इस स्थान पर देवी-देवताओं के कई रहस्यमयी मंदिर हैं। जिन्हें देखकर सभी हैरान रह जाते हैं। ऐसा ही एक मंदिर है कांगड़ा जिले में भगवान भोलेनाथ का। जहां माता पार्वती और शिव का मिलन देखने का सौभाग्य श्रद्धालुओं को भी मिलता है। हालांकि यह एक दृश्य खास मौसम में ही देखने को मिलता है। मान्यता है कि इस मंदिर में सिर झुकाने वाले की झोली कभी भी खाली नहीं रही। आइए जानते हैं क्या है इस मंदिर का इतिहास और कैसे होता है देवी पार्वती और शिवजी का यह अनोखा मिलन और क्या है यह रहस्य?
महादेव मंदिर काफी रहस्यमयी है। दावा है कि इस मंदिर में विराजमान शिवलिंग दुनिया का पहला ऐसा शिवलिंग है जो दो भागों में विभाजित है। इसके एक भाग को शिव तो दूसरे को मां पार्वती का रूप माना जाता है। बता दें कि मंदिर में स्थापित शिवलिंग अष्टकोणीय है। शिव के रूप में पूजे जाने वाले शिवलिंग की ऊंचाई तो 8 फुट है वहीं माता पार्वती के रूप में पूजे जाने वाले हिस्से की ऊंचाई 6 फुट है।काठगढ़ शिव मंदिर में दो भागों में विभाजित शिवलिंग को अर्द्धनारीश्वर शिवलिंग कहा जाता है। कहा जाता है कि जैसे माता पार्वती भोलेनाथ के आधे अंग पर विराजती हैं वैसे ही इस शिवलिंग में भी वह विराजमान हैं। यूं तो यह शिवलिंग दो भागों में अलग-अलग रहता है। लेकिन सर्दी के मौसम में यह दोनों करीब आ जाते हैं। यह कैसे होता इस बारे में केवल यही कहा जाता है कि ग्रहों की स्थिति के अनुसार ही शिवलिंग पास और दूर होते हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार काठगढ़ मंदिर मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के अनुज भ्राता भरत को अत्यंत प्रिय था। यही नहीं इसे उनकी आराध्य स्थली भी कहा जाता है। कथानकों के अनुसार भरत जी जब भी अपने ननिहाल कैकेय देश जाते तो इस मंदिर के दर्शन जरूर करते। इसके अलावा जब कभी उन्हें मौका मिलता तो भी इस स्थान पर भोलेनाथ और माता पार्वती की पूजा करने आते थे।
काठगढ़ मंदिर के सौंदर्यीकरण के बारे में कथा मिलती है कि महाराजा रणजीत सिंह को यह धाम अत्यंत प्रिय था। उन्होंने अपने शासनकाल के दौरान मंदिर का विस्तार किया। उनकी काठगढ़ मंदिर के प्रति इतनी अगाध आस्था थी कि वह प्रत्येक शुभ कार्य में मंदिर के समीप ही स्थित कुएं का जल प्रयोग करते थे।