दिव्या टाइम्स इंडिया।पहलगाम हमले के बाद संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि अहिंसा हमारा धर्म है और गुंडों को सबक सिखाना भी हमारा धर्म है। हम अपने पड़ोसियों का कभी अपमान या नुकसान नहीं करते लेकिन फिर भी अगर कोई बुराई पर उतर आए तो दूसरा विकल्प क्या है? राजा का कर्तव्य प्रजा की रक्षा करना है, राजा को अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। वे राजधानी दिल्ली में आयोजित एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में बोल रहे थे। कार्यक्रम में पहलगाम आतंकी हमले में जान गंवाने वाले पर्यटकों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
कार्यक्रम में अपने संबोधन के दौरान उन्होंने कहा कि हमारा धर्म संतुलन देने वाला धर्म है। हमारे यहां स्पष्ट उल्लेख है। …अहिंसा ही हमारा स्वभाव, हमारा मूल्य है। हमारी अहिंसा लोगों को अहिंसक बनाने के लिए है। कुछ लोग (अहिंसक) बन जाएंगे, कुछ लोग बिगड़ जाएंगे…और इतने बिगड़ जाएंगे कि दुनिया में उपद्रव करेंगे। हम किसी के दुश्मन नहीं हैं। द्वेष हमारा स्वभाव नहीं है। रावण का वध भी उसके कल्याण के लिए हुआ। संहार को हिंसा नहीं कहते। आततायियों से मार न खाना और गुंडागर्दियों को सबक सिखाना, यह भी हमारा धर्म है। पाश्चत्य विचार पद्धति में यह दोनों चीजें एक साथ नहीं चल सकतीं। वहां यह संतुलन ही नहीं है, लेकिन हमारे यहां यह संतुलन है।
राजा का कर्तव्य है प्रजा की रक्षा करना
हम कभी भी अपने पड़ोसियों का कोई अपमान, कोई हानि नहीं करते, लेकिन अगर हम इस तरह रहें और तब भी कोई बुराई पर ही उतर आए तो हमारे पास दूसरा इलाज क्या है? राजा का तो कर्तव्य है प्रजा की रक्षा करना है और राजा अपना कर्तव्य करेगा। गीता में अहिंसा का उपदेश है, लेकिन महाभारत में अर्जुन लड़े। उन्होंने लोगों को मारा क्योंकि उस समय उनके सामने ऐसे लोग थे कि उनका दूसरा इलाज नहीं था।
सनातन धर्म को सही अर्थों में समझने की आवश्यकता
अपने संबोधन के दौरान मोहन भागवत ने सनातन धर्म को सही अर्थों में समझने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि धर्म तब तक धर्म नहीं है जब तक वह सत्य, शुचिता, करुणा और तपस्या के चार सिद्धांतों का पालन नहीं करता। उन्होंने कहा कि इससे परे जो कुछ भी है वह अधर्म है।
उन्होंने आगे कहा कि वर्तमान में हमने धर्म को कर्मकांड और खान-पान की आदतों तक सीमित कर दिया है, जैसे कि किसकी किस तरह पूजा की जानी चाहिए और क्या खाना चाहिए और क्या नहीं। यह एक संहिता है… सिद्धांत नहीं। धर्म एक सिद्धांत है।
हिंदू धर्मग्रंथों में कहीं भी अस्पृश्यता का उपदेश नहीं
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि हिंदू समाज को हिंदू धर्म को समझने की आवश्यकता है, जो दुनिया के सामने अपनी परंपराओं और संस्कृति को पेश करने का सबसे अच्छा तरीका होगा। हिंदू धर्मग्रंथों में कहीं भी अस्पृश्यता का उपदेश नहीं दिया गया है। कोई भी ‘ऊंच’ या ‘नीच’ (ऊंचा या नीच) नहीं है। उन्होंने कहा यह कभी नहीं कहा जाता कि एक काम बड़ा है और दूसरा छोटा… अगर आप ऊंच-नीच देखते हैं, तो यह अधर्म है। यह दयाहीन व्यवहार है। मोहन भागवत ने कहा कि कई धर्म हो सकते हैं और उनमें से प्रत्येक उनका पालन करने वालों के लिए महान हो सकता है। लेकिन, व्यक्ति को अपने द्वारा चुने गए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए और दूसरों का सम्मान करना चाहिए।
आगे उन्होंने कहा कि किसी को बदलने की कोशिश मत करो। धर्म के ऊपर एक धर्म है। जब तक हम इसे नहीं समझेंगे, हम धर्म को नहीं समझ पाएंगे। धर्म के ऊपर वह धर्म आध्यात्मिकता है।