देहरादूनःहर्षिता। कभी नोटिस दिए बिना चल पड़ा बुलडोज़र… और देखते ही देखते टूट गई किसी की दीवार, बिखर गया किसी का आशियाना। लेकिन अब ऐसा अचानक नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद शहरी विकास विभाग ने अतिक्रमण हटाने के लिए सख़्त एसओपी (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर) जारी कर दी है।
देहरादूनः
कभी रातों-रात बिना नोटिस बुलडोज़र पहुंचा… किसी की दुकान ढही, किसी का मकान मलबे में बदल गया। लेकिन अब तस्वीर बदल गई है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उत्तराखंड में बुलडोज़र चलाना आसान नहीं होगा।
📌 क्या बदला नियम?
शहरी विकास विभाग ने अतिक्रमण हटाने के लिए नई एसओपी (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर) लागू की है। अब कोई भी विभाग सीधे कार्रवाई नहीं करेगा।
👉 15 दिन पहले नोटिस, सुनवाई और अपील का पूरा मौका देना अनिवार्य होगा।
🏗️ खुद हटाने का समय
ध्वस्तीकरण का आदेश आने के बाद भी कब्जाधारक को तुरंत नुकसान नहीं झेलना पड़ेगा। उसे 15 दिन का वक्त खुद अतिक्रमण हटाने के लिए मिलेगा।
👉 यह छूट उन मामलों में नहीं होगी जो कोर्ट में लंबित हैं या जिन पर स्टे ऑर्डर लागू है।
💻 हर कदम पर पारदर्शिता
अब कार्रवाई गुपचुप नहीं होगी। तीन माह में तैयार होने वाले विशेष ऑनलाइन पोर्टल पर हर नोटिस, आदेश और रिपोर्ट दर्ज होगी।
🎥 वीडियोग्राफी और गवाह ज़रूरी
अब तोड़फोड़ के दौरान हर पल रिकॉर्ड होगा।
कार्रवाई से पहले विस्तृत रिपोर्ट पर दो पंचों के हस्ताक्षर होंगे।
पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी होगी।
मौके पर मौजूद अधिकारियों और कर्मचारियों की लिखित सूची बनेगी।
⚖️ गलती की भारी सज़ा
सबसे बड़ा प्रावधान – अगर ध्वस्तीकरण ग़लत साबित हुआ या पहले से कोर्ट का स्टे मौजूद था, तो इसकी व्यक्तिगत जिम्मेदारी संबंधित अधिकारी की होगी।
👉 उसे ही मुआवजा और पुनर्निर्माण का पूरा खर्च अपनी जेब से देना पड़ेगा।