हल्द्वानी,मुहमद कैफ। उत्तराखंड का लोकपर्व घी त्यार (घी त्योहार) हर वर्ष घी खाने के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार भी हरेले की ही तरह ऋतु आधारित है। हरेला जहां बीजों को बोने और वर्षा ऋतु के आगमन का प्रतीक है, वहीं घी त्यार फसलों में बालियों के लग जाने पर मनाया जाता है। सोमवार को यह त्योहार पूरे उत्तराखंड में बनाया गया।
उत्तराखंड में हिंदू कैलेंडर के अनुसार संक्रांति को लोकपर्व के रूप में मनाने का प्रचलन है। भाद्रपद मास की संक्रांति को घी त्यार के रूप में मनाया जाता है। इस दिन हर किसी को घी का सेवन करना जरूरी माना जाता है। मगर अब घी का प्रचलन बेहद कम होता जा रहा है। एक तरफ तेलों के दाम आसमान छू रहे हैं। सेहत का ख्याल रखते हुए लोग भी तेल खाने से बच रहे हैं। वे घी का प्रयोग करना चाहते हैं।
मगर ग्रामीण इलाकों में शुद्ध घी के दाम काफी बढ़ चुके हैं। जबकि कई इलाकों में शुद्ध घी मिलना भी मुश्किल हो गया है। पहाड़ों में घी के दाम जहां 600 से 700 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गए हैं, वहीं शहरों में और अधिक दाम वसूले जाते हैं। अधिकांश लोगों को दानेदार और खुशबू वाला घी पसंद है, पीला घी देखते ही लोग उसके दामों पर मोलभाव शुरू कर देते हैं
