नई दिल्ली डीटी आई न्यूज़।शिक्षा मंत्री के रूप में कई प्रयोगों के बाद जब रमेश पोखरियाल निशंक को लाया गया, तो उम्मीद की गई कि वे देश की शिक्षा प्रणाली भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के अनुरूप लागू करने में सफल होंगे। कई पुस्तकों के लेखक और भारतीय संस्कृति के जानकार के रूप में उनसे ऐसी अपेक्षा अनुचित भी नहीं थी। लेकिन नई शिक्षा नीति के अंतिम रूप देने के अलावा उनके पास बताने के लिए कोई उपलब्धि नहीं है। कोरोना के कारण देश की पूरी शिक्षा प्रणाली अस्त-व्यस्त रही।
शिक्षा के क्षेत्र में कोई नवाचार लाकर उसे नई दिशा देने की जगह निशंक उससे निपटने के लिए संघर्ष करते दिखे। शिक्षा मंत्रालय की सभी संस्थाओं पर उनकी पकड़ इतनी कमजोर दिखी कि उन विभागों द्वारा वित्त प्रदत्त पत्रिकाओं में प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ जहर उगला जाता रहा और उन्हें इसकी भनक तक नहीं लगी। मामला जानकारी में आने के बाद भी वे तत्काल कार्रवाई करने में विफल रहे। शिक्षा मंत्रालय के हालात को लेकर प्रधानमंत्री की नाराजगी को इस बात से समझा जा सकता है कि वहां निशंक के साथ-साथ उनके राज्यमंत्री संजय धोत्रे को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।