नई दिल्ली : रविवार को सामने आए हिंदी पट्टी के तीन राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान व छत्तीगढ़ के नतीजे कांग्रेस के लिए ही नहीं, बल्कि विपक्षी एकजुटता के लिए भी किसी बड़े झटके से कम नहीं माने जा रहे। इन नतीजों ने न सिर्फ कांग्रेस से दो राज्यों राजस्थान व छत्तीसगढ़ की सरकार छीनकर एक राज्य में मध्यप्रदेश में लंबे अरसे से सत्ता से दूर पार्टी के सत्ता में आने का सपना तोड़ दिया, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर उसकी हैसियत व कद को भी जोरदार झटका दिया है। कर्नाटक व हिमाचल प्रदेश में हुई जोरदार जीत के बाद कांग्रेस विपक्षी गठबंधन इंडिया में मजबूत धुरी बनने की राह पर थी, उसमें यह हार एक बड़ हिचकोला सबित होने जा रही है। वहीं इन नतीजों का एक बड़ा नुकसान राहुल गांधी को भी होने जा रहा है, जिन्होंने पिछले साल अपनी भारत जोड़ो यात्रा के जरिए देश में कांग्रेस के लिए न सिर्फ एक माहौल बनाने की कोशिश की, बल्कि खुद को एक गंभीर नेता के तौर पर सामने रखते दिखाई दिए। दरअसल, इस यात्रा के बाद मल्लिकार्जुन खरगे के कांग्रेस अध्यक्ष होने के बावजूद लोगों के बीच कांग्रेस का चेहरा राहुल गांधी बन चुके थे।
कांग्रेस के लिए रही गड़बड़ी
हिंदी पट्टी राज्यों में हुई कांग्रेस की इस शर्मनामक हार के लिए दूसरे कारकों से ज्यादा कांग्रेस को खुद जिम्मेदार माना जा रहा है। इस हार के बाद कर्नाटक व हिमाचल प्रदेश की जीत के बाद कांग्रेस में आया अति आत्मविश्वास व अभिमान को अहम वजह माना जा रहा है। वहीं पार्टी सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस के छत्रपों ने राष्ट्रीय नेतृत्व व पार्टी के फीडबैक को दरकिनार कर चुनावी फैसलों में अपनी जिद व मजमर्जी चलाई, जिसका खामियाजा पार्टी की हार के तौर पर सामने आया। कहा जा रहा है कि अशोक गहलोत, कमलनाथ व भूपेश बघेल जैसे नेताओं ने टिकट वितरण में पार्टी सर्वे रिपोर्ट को दरकिनार कर अपने तरीके से टिकट बांटे।
वहीं कई मामलों में पार्टी के भीतर पैसे लेकर टिकट बांटने के आरोप भी लग रहे हैं। पार्टी के भीतर चर्चा है कि राजस्थान में गहलोत सरकार के बेहतर काम के बावजूद जमीन पर विधायकों के खिलाफ नाराजगी, आपसी गुटबाजी भारी पड़ी, वहीं मध्यप्रदेश में कमलनाथ का सिंगलहैंडेड पार्टी चलाने का तरीका, तवज्जो न मिलने से नाराज कांग्रेस कार्यकर्ताओं का घर पर बैठना भारी पड़ा। इंदौर में कांग्रेस से जुड़े जयकिशन बौरासी का कहना था कि कांग्रेस के बड़े नेताओं ने अपने वर्कर्स पर भरोसा करने की बजाय अपने परिवारीजनों और किराए पर रखी फौज पर भरोसा किया, नतीजा हुआ कि कांग्रेस वर्कर घर से ही नहीं निकला। मध्य प्रदेश में कांग्रेस की इस जबरदस्त हार के पीछे सनातन वाले विवाद भी एक अहम कारक बना। जहां इंडिया गठबंधन के डीएमके नेता उदयनिधि स्टालिन ने सनातन की तुलना डेंगू व मलेरिया से कर विवाद को जन्म दिया था। जिसमें कांग्रेस की चुप्पी व बचाव की कोशिश में कुछ नेताओं की अनर्गल बयानबाजी माहौल को पोलराइज कर गई।
कहा जाता है कि इस विवाद के बाद बीजेपी सरकार से त्रस्त कांग्रेस के पक्ष में मन बना रहा शहरी वोटर वापस अपने खोल में सिमट गया। मध्य प्रदेश में एक कांग्रेसी नेता का कहना था कि इस बार कांग्रेसी वर्कर कुछ वैसा ही दूर हो गया था, जैसे 2003 में दिग्विजय सिंह के दौर में। दूसरी ओर छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के मामले, सीनियर नेताओं के बीच आपसी गुटबाजी और बघेल का मनमाने तरीके से सरकार चलाने को जिम्मेदार माना जा रहा है। इन नतीजों से यह भी संकेत निकलता दिखाई दिया कि हिंदी पट्टी में कांग्रेस जिस आक्रामक तरीके से जाति जनगणना और ओबीसी का मुद्दा उठा रही थी, वह भी लोगों के बीच कांग्रेस के पक्ष में काम करता दिखाई नहीं दिया। लोगों ने इसे नकार दिया। ऐसे में कांग्रेस को इसे लेकर अपनी रणनीति पर नए सिरे से विचार करना होगा।
राष्ट्रीय राजनीति में मुश्किल होगी राह
माना जा रहा है कि इन नतीजों का असर राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में सीधा कांग्रेस के आगामी भूमिका व रणनीति पर पड़ेगा। आगामी 2024 के मद्देनजर विपक्षी खेमे ने जो इंडिया गठबंधन बनाया है, उसमें कांग्रेस की बड़ी भूमिका देखी जा रही है। लेकिन इन नतीजों ने उस परियोजना और कवायद को जोरदार झटका दिया है। यह नतीजे न सिर्फ कांग्रेस की भूमिका के लिए ही एक झटका हैं, बल्कि आगामी लोकसभा चुनाव में विपक्षी खेमे की तैयारियों व जीत की संभावनाओं की चूले हिलाने वाले माने जा रहे हैं। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में इंडिया गठबंधन की बैठकों में कांग्रेस की हैसियत, उसकी आवाज और उसकी बारगेनिंग पावर सभी कमजोर होगी।
कांग्रेस के कमजोर होने का सीधा मतलब आने वाले दिनों में गठबंधन में क्षेत्रीय दलों का हावी होना रहेगा। चुनाव से पहले ही जेडीयू व नीतीश कुमार पांच राज्यों के चुनावों में इंडिया गठबंधन को लेकर कांग्रेस पर अनेदखी का आरोप लगा चुके हैं। वहीं मध्य प्रदेश में सीट शेयरिंग को लेकर कांग्रेस व एसपी नेता अखिलेश यादव आमने-सामने आ चुके हैं। आने वाले दिनों में एसपी, जेडीयू, टीएमसी, आप जैसे दल गठबंधन में कांग्रेस पर हावी होने की कोशिश करते दिखेंगे।