अरेस्ट तो उनका बाप भी नहीं कर सकता स्वामी रामदेव को
(परविन्दर कौर) ऐसी भाषा रामदेव जैसा शख्स ही बोल सकता है. यहाँ ‘उनका बाप’ अपमानजनक शब्द है जिसे एलोपेथी के चिकित्सकों के लिए इस्तेमाल किया गया है. दूसरा ‘स्वामी’ उपसर्ग इस शख्स ने स्वयं के लिए लगाया है. यह सब संविधान और राष्ट्र के विरोध में है.
संविधान की दृष्टि से कोई भी अवैज्ञानिक टिप्पणी और अपने नाम के आगे स्वामी व बाबा जैसे उपसर्ग लगाना संविधान के खिलाफ हरकत है!
स्वामी रामदेव ने कहा है-‘अरेस्ट तो उनका बाप भी नहीं कर सकता स्वामी रामदेव को.’ इसका साफ़ मतलब है कि आपराधिक कृत्य सिद्ध हो जाने के बाद भी उसके हिसाब से उसकी गिरफ़्तारी कोई नहीं कर सकता. यह भारतीय संविधान, उसके अनार्गत अधिनियमित विधि-प्रणाली, प्रक्रिया, नियमावली नीति वगैरा को खुला चुनौती है. यह राष्ट्रद्रोह व राजद्रोह की श्रेणी में आता है. वैचारिक भेद रखने वाले लोगों राजनेता, बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकर्त्ताओं को यहाँ राष्ट्रद्रोही व राजद्रोही ब्रांडिंग करने की हरकतें खासकर गत सात वर्षों से आरंभ हुआ है. इस की भाषा के ख़िलाफ़ किसी भक्त ने अब तक एक शब्द नहीं बोला है.
राष्ट्र स्तर पर जब एलोपेथी के डॉक्टरों ने एतराज़ किता तब केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने इस कृत्य का नोटिस लिया. तुलसीदास कह गए कि ‘प्रभुता पाई काही मद नाहीं’ इस शख्स को धन का दंभ है. इस दंभ को इसने संविधान व सरकारों से ऊँचा मान लिया.
वैज्ञानिक व तकनीकी ज्ञान के लम्बे अध्ययन व अभ्यास के बाद कोई आदमी डॉक्टर, नर्स व आधुनिक दवाओं का जानकर बनता है. भारत के संविधान की एक धारा 51-ए में स्पष्ट प्रावधान हैं कि ‘वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करना राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है. संविधान ने इसके साथ ही वैज्ञानिक व तार्किक चिंतन को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी राज्य को सौंप रखी है. इसका तात्पर्य यह हुआ कि यदि कोई व्यक्ति अवैज्ञानिक, अतार्किक, मूर्खतापूर्ण आचरण करता है तो वह संविधान और राष्ट्र के विरुद्ध कृत्य माना जाना चाहिए. रामदेव लाला द्वारा एलोपेथी के खिलाफ इस कदर बकवास करना इसी श्रेणी में आता है. आश्चर्य है कि कोई सत्ताधारी शख्स चुप क्यों है?
• ‘अरेस्ट तो उनका बाप भी नहीं कर सकता स्वामी रामदेव को’ कहने वाला यह लाला रामदेव अपने नाम के पहले ‘स्वामी’ व ‘बाबा’ की उपाधि लगाता है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 18 के तहत उपाधियों का अंत किया हुआ है. उपाधियां रुतबा, शक्ति, उच्चता दर्शाती है. समानता के मौलिक अधिकार के संरक्षण के लिए संविधान निर्माताओं द्वारा उपाधियों का अंत अनिवार्य माना गया. तदनुसार इनका अंत कर दिया गया. राजतन्त्र व उपनिवेशवादी ज़माने में राजा, महाराजा, महारानी, सुल्तान, रायबहादुर, राजबहादुर, रायसाहब, सर, नाइट जैसे खिताब अब नहीं दिए जा सकते. जहाँ कहीं पदसोपान व सम्मान के लिए उपाधियाँ आवश्यक मानी जाती हैं, उनके लिए संविधान में विशेष छूट दी हुई हैं, जैसे सेना, विद्या व अन्य क्षेत्रों की विशिष्ट उपलब्धियाँ. इनमें पद्म पुरस्कार, खेल सम्मान, भारत रत्न जैसे अवार्डों सहित सेना के जनरल, कमांडर, चीफ मार्शल आदि पद सम्मिलित हैं. किसी के नाम के आगे ‘स्वामी या बाबा’ जैसे उपसर्ग उपाधि की श्रेणी में आते हैं. रामदेव नाम से पहले ऐसे उपसर्ग लगाते रहने का कोई बाँदा विरोध क्यों नहीं करता, जबकि ऐसा कृत्य संविधान विरोधी है. और ऐसा है तो निश्चित रूप से राष्ट्र विरोधी है.