हरिद्वार | हर्षिता। उत्तराखंड में खनन उद्योग पर संकट के बादल गहराते जा रहे हैं। सरकारी नीतियों, कोर्ट केस, निजी कंपनियों के ठेके, और महंगे निर्माण मटेरियल की वजह से न केवल उद्योग बर्बादी की ओर है, बल्कि आम आदमी का घर बनाने का सपना भी बिखर रहा है।

अब सवाल है — अगर 121 क्रशर बंद हो गए तो राज्य को क्या नुकसान होगा और जनता को इसका कितना खामियाजा भुगतना पड़ेगा? आइए समझते हैं।


⚠️ 1. खनन का सरकारी ठेका बना नुकसान की वजह!

उत्तराखंड सरकार ने खनन क्षेत्र के संचालन के लिए एक प्राइवेट कंपनी को ठेका दे रखा है।
इस व्यवस्था के कारण:

क्रशर यूनिटों को मटेरियल महंगे दामों पर खरीदना पड़ रहा

ट्रांसपोर्ट, टैक्स, और औपचारिक रॉयल्टी के साथ-साथ “ठेकेदारी प्रीमियम” भी देना पड़ता है

घाटे में चल रही यूनिटें बंद होने की कगार पर हैं

सरकार को मिलने वाली रॉयल्टी में भारी गिरावट दर्ज की गई है

🏗️ “काम करें तो घाटा, न करें तो बंदी — क्रशर मालिक बेमन से खामोश हैं।”


⚖️ 2. हाईकोर्ट में गंगा प्रहरी बनाम सरकार — मामला गरम

उत्तराखंड हाईकोर्ट, नैनीताल में गंगा प्रहरी संगठन ने याचिका दायर की है:

माँग: गंगा नदी से 5 किलोमीटर की परिधि में सभी क्रशर बंद किए जाएं

इससे 121 क्रशर सीधे प्रभावित होंगे

कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा है

गंगा की धार्मिक और पारिस्थितिक सुरक्षा को आधार बनाया गया है

➡️ यदि आदेश आता है, तो पूरे हरिद्वार और आस-पास के क्रशर क्षेत्र की रीढ़ टूट सकती है


🧱 3. महंगे मटेरियल से आम आदमी का सपना अधूरा

क्रशर से निकलने वाले पत्थर, गिट्टी, रेत निर्माण के मुख्य आधार हैं।
जब इन्हें ठेके के माध्यम से और घाटे में लाकर बेचा जाएगा:

बाजार में बजरी–गिट्टी की कीमतें 30–50% तक बढ़ चुकी हैं

घर बनाने का बजट 4–6 लाख तक बढ़ा

सरकारी आवासीय योजनाएं भी प्रभावित

🧓 “छोटा घर बनाना अब अमीरों का सपना हो गया है” — स्थानीय नागरिक


🧍‍♂️ 4. 121 क्रशर बंद = 7,000 से ज्यादा लोग बेरोजगार!

हर एक क्रशर यूनिट में औसतन 50–60 लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलता है:

मशीन ऑपरेटर

ट्रक ड्राइवर

मज़दूर

पार्ट सप्लायर

स्थानीय दुकानदार

➡️ 121 क्रशर बंद होने पर लगभग 7,000+ लोगों की रोज़ी-रोटी संकट में


📉 निष्कर्ष: खनन संकट बना राज्य का सामाजिक–आर्थिक संकट

मुद्दा प्रभाव

सरकारी ठेका क्रशर घाटे में
कोर्ट मामला 121 यूनिटों पर बंदी की तलवार
महंगा मटेरियल जनता की जेब पर सीधा असर
बेरोजगारी हज़ारों परिवार प्रभावित
रॉयल्टी सरकार को राजस्व घाटा


📣 अब जरूरी है:

✅ सरकार पारदर्शी नीति लाए

✅ वैध क्रशर यूनिटों को राहत मिले

✅ कोर्ट और पर्यावरणीय संतुलन को ध्यान में रखते हुए व्यावहारिक हल निकले

✅ प्राइवेट कंपनियों की भूमिका की समीक्षा हो

✅ आम आदमी के सपनों की कीमत न बढ़े


🛑 क्रशर सिर्फ पत्थर नहीं तोड़ते, वे रोज़गार, घर और ज़िंदगियों की नींव रखते हैं। उन्हें बचाइए, संतुलन के साथ!

By DTI