देहरादून,हर्षिता।केंद्र मे कांग्रेस का कमजोर नेतृत्व के कारण हर राज्य में कांग्रेस में गुटबाजी देखने को मिल रही है। राजस्थान में पिछले 1 साल से कांग्रेस यह फैसला नहीं कर पाई कि सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच की खाई को कैसे दूर किया जाए पंजाब में भी ऐसे ही कांग्रेस में हालात बने हुए हैं जहां पर नवजोत सिंह सिद्धू, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह पर लगातार निशाने साध रहे हैं और कई बैठकें के दौर होने के बाद भी कांग्रेस नेतृत्व गटबाजी को समाप्त नही कर सका ।
हरियाणा में पार्टी की उठापटक खुलेआम सड़क पर आ गई है। पंजाब-हरियाणा ही नहीं बल्कि राजस्थान से कर्नाटक और गुजरात से लेकर महाराष्ट्र तक पार्टी हाईकमान को हलकान कर रहा है
वही बात करें उत्तराखंड की तो उत्तराखंड में भी कांग्रेस की विपक्षी दल की श्रीमती इंदिरा हरदेश आर्य की मृत्यु के बाद 20 दिन बीत जाने के बावजूद भी अभी तक विपक्षी दल का नेतृत्व कौन करें इसका फैसला कांग्रेस नहीं कर पाई लेकिन इसके उलट उत्तराखंड में भाजपा ने 3 दिन में ही नए मुख्यमंत्री का फैसला कर लिया
सत्ता पक्ष में मुख्यमंत्री के पद को लेकर उठे तूफान को संगठन के रणनीतिकारों और विधायकों ने मिल बैठकर 20 मिनट में शांत कर दिया। वहीं विपक्षी पार्टी कांग्रेस में 20 दिन बाद भी नेता प्रतिपक्ष की खोज जारी है। भाजपा ने कुमाऊं से मुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस की उलझन और बढ़ा दी है।
इसे भाजपा का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है। कांग्रेस पर अब विधायक मंडल का नेता चुनने को लेकर दबाव बन गया है। सत्तारूढ़ भाजपा से पहले वह नेता चयन की उलझन में फंसी थी, लेकिन हल वह अब तक नहीं निकाल पाई है। जबकि पार्टी के सभी वरिष्ठ नेता दो दिन में नेता प्रतिपक्ष घोषणा होने का दावा कर रह थे। हालात बता रहे हैं कि नेता प्रतिपक्ष की घोषणा होने में कांग्रेस को अभी हफ्ता-दस दिन और लगेंगे।
पार्टी सूत्रों के अनुसार अभी तक कांग्रेस जिस रणनीति पर काम कर रही थी, उसमें नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी गढ़वाल के किसी ठाकुर नेता को दिए जाने और प्रदेश अध्यक्ष के पद पर कुमाऊं से किसी ब्राह्मण चेहरे को लाने की थी, लेकिन सत्ता पक्ष ने कुमाऊं के साथ तराई और युवा चेहरे पर दांव लगाते हुए मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पुष्कर सिंह धामी को बैठा दिया।
ऐसे में अब कांग्रेस को सियासी नफा-नुकसान को देखते हुए नए समीकरण तलाशने के लिए मजबूर कर दिया है। अब तक कांग्रेस प्रदेश को राजनीतिक अस्थिरता के भंवर में झोंकने का आरोप भाजपा पर लगा रही थी लेकिन अब खुद नए सियासी समीकरण तलाशने के लिए मजबूर हो गई है।
बताया जा रहा है कि पिछले दिनों पार्टी प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव, पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह और दोनों सहप्रभारियों ने तीन दिन चिंतन के बाद नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए जो प्लान बनाकर हाईकमान को भेजा था, उस पर अब नए सिरे से मंथन किया जाएगा। इसी उधेड़बुन में जब राज्य में इतना बड़ा सियासी भूचाल आ गया, तब भी कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह दिल्ली में ही डेरा जमाए हुए थे।
इधर, भाजपा ने जिस तरह से बदलते-बिगड़ते हालातों को बिना किसी डेमेज कंट्रोल के संभाला है, उसमें संगठन के रणनीतिकारों का अहम किरदार रहा है। जबकि कांग्रेस में संगठन के स्तर पर फिलहाल इसका अभाव दिखाई दे रहा है। पार्टी प्रदेश अध्यक्ष दिल्ली में डेरा डाले हैं तो कांग्रेस मुख्यालय भी इन दिनों सन्नाटे की चपेट में दिखाई देता है। उत्तराखंड में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने कहा कि
एक-दो दिन में मसले का हल निकल जाएगा। हमने हाईकमान को जो फार्मूला भेजा है, हमें उम्मीद है कि उसी हिसाब से निर्णय लिया जाएगा। अगर कांग्रेस की लेट् लतीफी जारी रही तो 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को इसका खामियाजा भूकतना पड़ सकता है