हरिद्वार, हर्षिता। हर साल जब दिवाली, जन्माष्टमी, रक्षाबंधन या करवा चौथ जैसे बड़े हिंदू त्योहार नज़दीक आते हैं, तो सोशल मीडिया से लेकर टीवी चैनलों तक एक ही सवाल गूंजने लगता है — “त्योहार किस दिन है?”
कहीं एक दिन बताया जाता है, तो कहीं दूसरा। ऐसे में आम जनमानस के मन में संशय बना रहता है कि आखिर हिंदू धर्म के पर्वों की तारीख़ों में यह असमंजस क्यों होता है।
🌙 चंद्र पंचांग पर आधारित हैं हिंदू त्योहार
दरअसल, हिंदू धर्म के अधिकांश त्योहार “चंद्र पंचांग” पर आधारित होते हैं।
हम अपने दैनिक जीवन में जो ग्रेगोरियन (अंग्रेज़ी) कैलेंडर इस्तेमाल करते हैं, वह सूर्य की गति पर आधारित होता है, जबकि हिंदू पंचांग चंद्रमा की गति पर निर्भर करता है।
चूंकि चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर घूमने में लगभग 29.5 दिन लेता है, इसलिए हर महीने की तिथि और पर्व की गणना चंद्रगति से बदलती रहती है।
इसी वजह से हर साल त्योहारों की तिथि अंग्रेज़ी कैलेंडर में बदल जाती है।
📅 कैसे तय होती है “तिथि”?
हिंदू पंचांग में एक “तिथि” का निर्धारण तब होता है जब चंद्रमा सूर्य से 12 डिग्री का कोण बनाता है।
कभी यह अवधि 24 घंटे से कम या ज़्यादा भी हो सकती है।
इसी कारण तिथि दो अलग-अलग सौर दिनों (अर्थात अंग्रेज़ी तारीख़ों) में फैली होती है।
🕕 त्योहार की तिथि कैसे तय की जाती है
हिंदू धर्म में त्योहार उसी दिन मनाया जाता है जिस दिन सूर्योदय के समय वह तिथि विद्यमान रहती है।
यदि किसी तिथि का आरंभ एक दिन पहले रात में हो जाए और दूसरे दिन सूर्योदय तक जारी रहे, तो पर्व दूसरे दिन मनाया जाता है।
उदाहरण के तौर पर —
यदि अमावस्या तिथि 31 अक्टूबर की रात 10 बजे से शुरू होकर 1 नवम्बर सुबह 8 बजे तक रहती है,
तो 1 नवम्बर के सूर्योदय पर अमावस्या विद्यमान मानी जाएगी, इसलिए दिवाली 1 नवम्बर को ही मनाई जाएगी।
🌑 दिवाली, जन्माष्टमी और शिवरात्रि जैसे त्योहारों में भ्रम क्यों होता है
कुछ त्योहारों का निर्धारण सिर्फ सूर्योदय की बजाय विशेष काल (मुहूर्त) से भी जुड़ा होता है —
जैसे कि:
महा शिवरात्रि — निशीथकाल (रात्रि के मध्य भाग) में होती है।
जन्माष्टमी — भगवान श्रीकृष्ण के जन्म नक्षत्र और अष्टमी तिथि के मध्य रात्रि काल के अनुसार मनाई जाती है।
दिवाली — अमावस्या तिथि पर प्रदोष काल (संध्याकाल) के अनुसार मनाई जाती है।
जब इन विशेष कालों का मेल दो अलग-अलग तिथियों में पड़ता है, तो विद्वान पंडितगणों में मतभेद हो जाता है — यही कारण है कि कुछ पंचांग एक दिन पहले और कुछ एक दिन बाद त्योहार मानते हैं।
📖 क्या कहते हैं धर्मग्रंथ और ज्योतिषाचार्य
ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि त्योहार की तिथि का चयन केवल गणना का विषय नहीं, बल्कि परंपरा और आस्था से भी जुड़ा है।
भारत के विभिन्न क्षेत्रों में प्रयुक्त पंचांगों में स्थानीय खगोलीय स्थिति (देशांतर-अक्षांश) के अनुसार भी भिन्नता होती है।
इसी वजह से कई बार उत्तर भारत और दक्षिण भारत में त्योहार की तारीख़ें अलग-अलग होती हैं।
🌞 संक्षेप में समझिए — हिंदू धर्म में तिथि निकालने का मूल सूत्र
🌅 जिस दिन सूर्योदय के समय संबंधित तिथि विद्यमान रहती है, वही दिन उस पर्व का माना जाता है।
(कुछ विशेष पर्व निशीथ या संध्याकाल के अनुसार तय किए जाते हैं।)
🌼 निष्कर्ष
त्योहारों में तिथियों को लेकर भ्रम असल में खगोलशास्त्र और पंचांग की विविध गणनाओं के कारण होता है।
लेकिन इसके बावजूद हर पर्व का मूल भाव एक ही रहता है — आस्था, श्रद्धा और समाज में एकता का संदेश देना।