देहरादून,कुमार विश्ववश।नई दिल्ली : देश की राजधानी दिल्ली में बीते एक दशक से आप रह रहे हैं या यहां की सियासी गतिविधियों पर नजर रही है तो जरा फ़्लैशबैक में जाइए. देश में जेपी आंदोलन के बाद अगस्त 2011 में दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में जिस अन्ना आंदोलन से अस्तित्व में आम आदमी पार्टी निकलकर आई. आज देश में होने वाले हर चुनाव में यह पार्टी अन्य राजनीतिक दलों के लिए बड़ी चुनौती बनकर उभर रही है ,
आम आदमी पार्टी बनने से पहले अरविंद केजरीवाल जिन सहयोगियों के साथ समाजसेवी अन्ना हज़ारे के नेतृत्व में आंदोलन शुरू किया था उनमें मशहूर अधिवक्ता शांतिभूषण, प्रशांत भूषण, प्रोफेसर आनंद कुमार, योगेंद्र यादव, कुमार विश्वास जैसे साथी हमेशा साए की तरह केजरीवाल के साथ होते थे. उस समय इंडिया अगेंस्ट करप्शन नाम सुर्खियों में था. अप्रैल से दिसंबर 2011 तक इसी नाम के बैनर तले जंतर-मंतर से भ्रष्टाचार खत्म करने और जन लोकपाल के लिए सभी ने आवाजें बुलंद की. तब ये सब आंदोलनकारी राजनीति में आने की बात को सिरे से नकारते थे. लेकिन एक साल बाद जब 26 नवंबर 2012 को अरविंद केजरीवाल की अगुवाई में आम आदमी पार्टी गठन करने का फैसला जंतर मंतर लिया गया तब भी बड़ा बवंडर मचा. अन्ना हज़ारे ने सबसे पहले अपने आप को इससे अलग कर रालेगण सिध्दि चले गए. जिसके बाद से साए की तरह साथ रहने वाले संस्थापक सदस्य भी केजरीवाल और उनकी टीम से विचार मेल नहीं खाने के चलते टूटते चले गए.
दिल्ली में लगातार तीन बार सरकार बनाने के बाद अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी पंजाब विधानसभा चुनाव जीतने के लिए जी-जान से जुटी हुई है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपने तमाम मंत्रिमंडल के साथ पंजाब में डेरा डाले हुए हैं. लेकिन तीन दिन पहले केजरीवाल के कभी विश्वासपात्र रहे कुमार विश्वास ने केजरीवाल के अलगाववादी मंसूबों को लेकर बयान दिया. इससे आम आदमी पार्टी में पिछले तीन दिनों से उठा बवंडर भले थमता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है.