दिव्या टाइम्स इंडिया।भारत में शादियाँ मौज-मस्ती और खेल-कूद से भरी होती हैं, लेकिन चीन के दक्षिण-पश्चिमी प्रांत सिचुआन में रहने वाली तुजिया जनजाति के लोगों की शादियाँ बिल्कुल अलग होती हैं। इस जनजाति के लोग यहां हजारों सालों से रह रहे हैं और अपनी शादी में दुल्हनों का रोना बहुत जरूरी है।

माना जाता है कि यह अनोखी परंपरा 475 ईसा पूर्व से 221 ईसा पूर्व के बीच शुरू हुई थी और 17वीं शताब्दी में अपने चरम पर थी। कहा जाता है कि जब जाओ रियासत की राजकुमारी की शादी हुई तो उसकी मां अपनी बेटी के वियोग में फूट-फूटकर रोने लगी।

उस घटना के बाद इस जनजाति में दुल्हन के रोने की परंपरा शुरू हो गई। यह अनोखी परंपरा शादी से एक महीने पहले शुरू होती है, जिसे दुल्हन के परिवार वाले बड़ी श्रद्धा से निभाते हैं।

हर दिन दुल्हन को एक घंटे तक रोना पड़ता है, इस दौरान परिवार की महिलाएं उसके साथ शामिल होती हैं और पारंपरिक गीत गाती हैं। ये गाने दुल्हन के जीवन में आए बदलावों और परिवार के साथ उसके रिश्ते की भावनाओं का वर्णन करते हैं।

दुल्हन के साथ परिवार वाले भी रोते हैं पहले दिन दुल्हन अकेले नहीं रोती, बल्कि उसकी मां और दादी भी दिल की गहराइयों से रोती हैं। यह शुरुआती दिन भावनाओं का ऐसा सागर होता है, जहां दुल्हन अपने पुराने घर और परिवार से जुड़ाव महसूस करती है.

क्योंकि वह अपनी नई जिंदगी की ओर बढ़ रही हैं. इस दौरान वह अपनी मां की गोद में सिर रखकर अपना दर्द साझा करती हैं। जैसे-जैसे दिन बीतते हैं, दुल्हन के आंसू और भी ज्यादा बढ़ जाते हैं.

और उसके प्राणों की प्रतिध्वनि उसके रोएं-रोएं में सुनाई पड़ती है। यह प्रक्रिया उसके भीतर एक नए इंसान के जन्म की तरह है, जहां वह अपना पुराना स्वरूप छोड़कर एक नया जीवन शुरू करती है। एक महीने तक चलने वाली इस परंपरा में, दुल्हन को अपने घर में अपने रिश्तेदारों और दोस्तों का प्यार मिल पाता है।

हर दिन यह परंपरा नई आशा लेकर आती है और दुल्हन को यह एहसास दिलाती है कि वह कभी अकेली नहीं है।

By DTI