मंसूरी, हर्षिता। उत्‍तराखंड में कई ऐतिहासिक मेले आयोजित किए जाते हैं और जो अपने आप में पहाड़ी विरासत समेटे हुए हैं। इसी प्रकार यमुना की सहायक नदी अगलाड़ में ऐतिहासिक राजमौण मेला शनिवार को हर्षोल्लास से मनाया गया।

मेले में यमुना घाटी, अगलाड़ घाटी तथा भद्रीघाटियों के दर्जनों गांवों के साथ ही समीपवर्ती जौनसार के अलावा मसूरी तथा विकासनगर के ग्रामीण शामिल हुए। इस दौरान ग्रामीणों ने एक अनुमान के मुताबिक करीब 60 क्विंटल से अधिक मछलियां पकड़ीं। मेले में लगभग साढ़े सात हजार से अधिक लोग मौजूद रहे।

अगलाड़ नदी में मनाया जाने वाला यह मौण मेला लगभग 158 साल पुराना है। इतिहासकारों का मानना है कि यह मौण मेला सन 1866 में राजशाही काल में शुरू हुआ था। राजशाही काल में टिहरी नरेश मौण मेले में मौजूद रहते थे।

प्रत्येक साल जून के अंतिम सप्ताह में अगलाड़ नदी में मछली पकड़ने का सामूहिक त्योहार मनाया जाता रहा है। वर्ष 2020 और 2021 में कोविड संक्रमण के कारण नहीं मनाया गया।

जौनपुर में मछली पकड़ने के मौण मेला टिहरी रियासत काल से ही चला आ रहा है। हर साल ग्रामीण इस मेले का आयोजन करते रहे हैं। मेले में ग्रामीण एक माह पहले जंगली जड़ी-बूटी टिमरू के पौधे की छाल निकालकर उसको सुखाकर घराट पर पीसा जाता है। उसी पाउडर को लेकर हजारों की संख्या में ग्रामीण एक तय तिथि पर नदी पर जाते हैं। ग्रामीण नदीं पर जाने के दौरान ढोल-दमाऊ की थाप पर जमकर नृत्य करते हैं। नदी पर पहुंचने के बाद ग्रामीण टिमरू पौधे की छाल से बने पाउडर को नदी में डालते हैं, जिससे नदी की मछलियां बेहोश हो जाती हैं। इसके बाद हजारों की तादात में ग्रामीण नदी में मछली पकड़ने के लिए कूद पड़ते हैं। इस मेले को राज मौण मेला भी कहा जाता है .

मौणकोट से शुरू हुआ मछलियां पकड़ने का सिलसिला
शनिवार को दोपहर बाद करीब ढाई बजे अगलाड़ नदी के मौणकोट नामक स्थान से मछलियां पकड़ने का सिलसिला शुरू हुआ, जो शाम लगभग साढे पांच बजे तक चलता रहा। लोगों ने अगलाड़ और यमुना नदी के संगम तक मछलियां पकड़ीं।

मौणकोट से लेकर अगलाड़ व यमुना नदी के संगम स्थल तक लगभग चार किमी क्षेत्र में लोगों ने मछलियां पकड़ी और लगभग साढे पांच बजे मौण मेला संपन्न हो गया।

By DTI