मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जंतर मंतर से हरिद्वार। वहां से सोरम (मुजफ्फरनगर) तक लिखी गई पहलवानों को शांत करने का सिलसिला। खाप पंचायतों द्वारा 9 जून को दोबारा से जंतर मंतर पर जाने का एलान। इस बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से पहलवानों की सीक्रेट मीटिंग, उसके बाद पहलवानों का अपनी ड्यूटी पर पहुंचना और राकेश टिकैत का यह कहना कि अब 9 जून को जंतर मंतर पर नहीं जाएंगे, अभी तक पहलवानों के आंदोलन की कुछ यही कहानी है। हालांकि यहां तक पहुंची इस कहानी में कोई एक-दो नहीं, बल्कि अलग-अलग कई किरदार हैं। अब इस के बाद सियासी गलियारों में यह चर्चा है कि क्या अब बृज मोहन सिंह के खिलाफ जो मामला दर्ज हुआ उसका का क्या होगा ।
खाप पंचायत से जुड़े एक वरिष्ठ पदाधिकारी के मुताबिक, 28 मई को नए संसद भवन का उद्घाटन हुआ, तो जंतर मंतर पर बैठे पहलवानों ने वहां जाकर प्रदर्शन करने का प्रयास किया। इस बात पर पहलवान, खाप पंचायत और दूसरे सामाजिक संगठन, एकमत नहीं थे। इसके बाद भी पहलवानों ने नए संसद भवन की तरफ कूच करने का प्रयास किया। दिल्ली पुलिस ने पहलवानों को ऐसा नहीं करने दिया। मीडिया में ऐसी तस्वीरें आईं, जिनमें पहलवानों और दिल्ली पुलिस के बीच धक्का मुक्की होती हुई दिखी। इसके बाद पहलवानों ने कहा, वे अपने मेडल गंगा (हरिद्वार) में बहा देंगे। इससे पहले कि मेडल बहाए जाते, किसान नेता नरेश टिकैत वहां पहुंच गए। उन्होंने पहलवानों को ऐसा करने से रोका। यही वो पॉइंट था, जब केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों की, पहलवानों के आंदोलन में एंट्री हो गई।
मुजफ्फरनगर के सांसद और केंद्रीय राज्य मंत्री डॉक्टर संजीव बालियान ने पहलवानों से बात की। उनकी मुलाकात केंद्र में एक शीर्ष नेता से कराने का भरोसा दिया। सूत्रों के अनुसार, बागपत के सांसद सत्यपाल सिंह भी इस विवाद में मध्यस्थ की भूमिका में नजर आए।
हरिद्वार में नरेश टिकैत ने पहलवानों से पांच दिन मांगे थे। उन्होंने भरोसा दिलाया था कि इस अवधि में खाप पंचायत एवं किसान संगठन कुछ न कुछ करेंगे। सोरम (मुजफ्फरनगर) में हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली के खाप प्रतिनिधियों की बैठक हुई। माना जा रहा था कि बैठक में कोई बड़ा निर्णय होगा, लेकिन राकेश टिकैत ने कहा, पंचायत ने फैसला ले लिया है और इसकी जानकारी कुरुक्षेत्र में होने वाली खाप पंचायत में दी जाएगी।
खास बात है कि यही वो पंचायत थी, जब पहली बार यह आवाज सुनाई पड़ी कि पहलवानों का आंदोलन हाईजैक हो रहा है। खाप प्रतिनिधियों के बीच मनमुटाव जैसा कुछ दिखा। कुरुक्षेत्र की पंचायत में कुछ खास नहीं हुआ। वहां भी सरकार को 9 जून तक का समय दे दिया। अगर इस अवधि में बृज भूषण शरण सिंह को गिरफ्तार नहीं किया गया, तो किसान संगठन एवं खाप पंचायतें, दोबारा से पहलवानों को लेकर जंतर मंतर पर पहुंच जाएंगी। जिस वक्त कुरुक्षेत्र की खाप पंचायत चल रही थी, उसी समय खबर आई कि बृजभूषण शरण सिंह की अयोध्या में होने वाली रैली स्थगित कर दी गई है। ये संयोग नहीं था, बल्कि पहलवानों के आंदोलन में केंद्र सरकार की एंट्री का इफेक्ट था।
चूंकि केंद्र सरकार किसी भी तरह से पहलवानों के मामले को शांत कराने की ठान चुकी थी, इसलिए पहलवानों के साथ बातचीत का दोतरफा संवाद शुरू हुआ। एक तरफ हरियाणा और दूसरी ओर यूपी के नेता, इसके लिए आगे आए। हरियाणा से जुड़े एक खाप प्रतिनिधि के मुताबिक, जंतर मंतर से लगते केरल हाउस में पहलवानों और केंद्र सरकार के मध्यस्थों की बैठक हुई। यह बैठक मई के अंतिम सप्ताह में हुई थी।
यहीं से पहलवानों के साथ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मुलाकात का रास्ता खुला। शाह की बैठक के लिए हरियाणा से राज्यसभा सांसद कार्तिकेय शर्मा, चरखी दादरी के विधायक सोमबीर सांगवान और भाजपा शासित एक बड़े प्रदेश के राज्यपाल प्रयासरत रहे। खास बात यह है कि हरियाणा से कार्तिकेय शर्मा बतौर निर्दलीय प्रत्याशी, राज्यसभा पहुंचे थे। सोमबीर सांगवान भी निर्दलीय विधायक हैं। उन्होंने गत विधानसभा चुनाव में भाजपा नेता और पहलवान बबीता फोगाट को हराया था। सांगवान ने भाजपा को समर्थन दिया और उन्हें पशुधन बोर्ड के चेयरमैन का पद सौंप दिया गया। किसान आंदोलन में उन्होंने पशुधन बोर्ड के चेयरमैन पद से इस्तीफा देकर खट्टर सरकार से समर्थन वापसी का एलान भी कर दिया था।
मुंडलाना गांव की महापंचायत में केंद्र सरकार की एंट्री का असर साफ दिख रहा था। इसके बाद सोमवार को राकेश टिकैत ने घोषणा कर दी कि अब 9 जून को जंतर मंतर पर नहीं जाएंगे। पहलवान आगे जो कुछ कहेंगे, वही करेंगे। किसान संगठन, पहलवानों के साथ खड़े हैं, उनका साथ देंगे। पहलवानों का आंदोलन शांत कराने के पीछे राजनीतिक नुक़सान का अंदेशा रहा। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को पता लग चुका था कि इस आंदोलन का असर हरियाणा में न केवल लोकसभा चुनाव, बल्कि विधानसभा चुनाव पर भी पड़ सकता है। इसी का डैमेज कंट्रोल करने के लिए सरकार ने यह कदम उठाया ।