महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के प्रमुख शरद पवार और पार्टी के वरिष्ठ नेता व उनके भतीजे अजित पवार के बीच चल रहा सत्ता संघर्ष नया मोड़ लेता दिख रहा है। चाचा के खिलाफ बगावत का ऐलान करने के बाद अजित पवार ने अब पार्टी पर भी दावा ठोक दिया है। महाराष्ट्र के नवनियुक्त उपमुख्यमंत्री अजित पवार बुधवार को महाराष्ट्र में बड़ा शक्ति प्रदर्शन किया। मुंबई एजुकेशन ट्रस्ट (MET) में अजित पवार द्वारा बुलाई गई बैठक में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के कम से कम 29 विधायकों और 4 एमएलसी ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
क्या अजित पवार से गुट दल बदल कानून से बच पाएगा।
एनसीपी के 40 नेताओं ने अजित पवार को अपना समर्थन दिया है। दलबदल विरोधी कानून के प्रावधानों को दरकिनार करने के लिए, पवार को 36 से अधिक विधायकों के समर्थन की आवश्यकता होगी। संविधान की दसवीं अनुसूची में दल-बदल विरोधी कानून निहित है। यह उन सांसदों या विधायकों को अयोग्य घोषित करने की प्रक्रिया की रूपरेखा तैयार करता है जो स्वेच्छा से अपनी पार्टी छोड़कर या पार्टी व्हिप के विरुद्ध मतदान करके दलबदल करते हैं। विधायकों को उनके राजनीतिक दलों से अलग होने से रोकने के उपाय के रूप में यह अनुसूची 1985 में शुरू की गई थी।
इसके अलावा, दल बदल कानून किसी राजनीतिक दल को किसी अन्य दल के साथ विलय की अनुमति देता है अगर उसके कम से कम दो-तिहाई विधायी सदस्य विलय के लिए सहमत हों । विलय की स्थिति में, पार्टी के विधायी सदस्यों को अयोग्यता का सामना नहीं करना पड़ेगा, भले ही वे विलय के लिए सहमत हुए हों, या विलय के बिना एक अलग समूह के रूप में कार्य करने का विकल्प चुना हो । ऐसे में अजित पवार गुट को अयोग्य होने से बचने के लिए राकांपा के 53 में से कम से कम 36 विधायकों का साथ चाहिए। बैठक में केवल 29 विधायक ही पहुंचे हैं लेकिन अजित ने दावा किया है कि सभी उनके संपर्क में हैं।