डेरा बाबा नानक (पंजाब)संजीव मेहता ।एक फौजी एक माह की छुट्टी ख़त्म कर वापस डियूटी पर जाने के लिए त्यार डेरा बाबा नानक के बस स्टैंड पे पहुँचता है । साथ मे उसकी पत्नी व दो लड़के जिनकी आयु एक कि 4 साल ओर दूसरे की 7 साल सभी लोग बस स्टैंड पहुचते है ।
बस आने को थोड़ा वक्त रहता है,तब तक सभी माहौल ठीक था।उतने में गंतव्य को जाने के लिए बस आ जाती है । जैसे ही वह फौजी बस में अपना समान रखने लगता है तो उसके दोनों बेटे रोने लग जाते पापा ना जाओ पापा ने जाओ,लेकिन फौलाद के सीने वाला फौजी जवान देश की सरहदों पर तैनात दुश्मन को नाकों चने चबाने के लिए मजबूर कर देता है ।
वह बड़े ही मजबूत इरादे लेकर अपने परिवार के इमोशन का सामना करता है । बस चलने लगती तो बच्चे रोने लगे जाते पत्नी के भी आंसू नही रुक पाते,वह रोते हुए बच्चों को चुप कराता है । लेकिन वह फौजी जवान बस की खिड़की से बाय-बाय करता है और करी जाता है जब तक वह नजरो से ओझल नही होता। लेकिन जब वह बस में अपनी सीट पर बैठता है तो फफक फफक कर रो पड़ता है । उसको देखकर जो भी उसके आस पास था वह भी अपने आप को भावक होने से नही रोक पाया । इत्तफाक से मैं भी उसी बस में था।लेकिन जो हाल बाकी के साथ हुआ वही मेरे साथ भी हुआ। यहीं बस नही बस अभी थोड़ा सा चलती है फौजी ड्राइवर से बोलता एक बार बस रोकिए कहता बच्चों के चॉकलेट है वह मेरे पास रह गए।ड्राइवर बस रोक देता है अभी बस 100 मीटर ही चली थी उस ने भाग कर बच्चों को चॉकलेट दी और वापस अपनी सीट पर बैठ गया । लेकिन आंखे नम थी और जल्दी से उस ने अपने आप को संभाला और इतने में बस चल दी।