नई दिल्ली संजीव मेहता चीफ एडिटर।यूपी के राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस एक सप्ताह के दौरान प्रियंका गांधी ने शायद उतना कुछ कर दिखाया है जितना वह अब तक के अपने पूरे राजनीतिक करियर में नहीं कर पायी थीं.

हालांकि उन्हें प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हुए बहुत दिन नहीं हुए हैं. अमेठी और रायबरेली की पारिवारिक सीटों से बाहर निकल कर पहली बार 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले प्रियंका गांधी सक्रिय हुई थीं.

ऐसे बहुत कम ही मौक़े रहें हैं जब प्रियंका गांधी कांग्रेस की ओर से लड़ती भिड़ती दिखी हैं लेकिन लखीमपुर मामले में उन्होंने सड़क पर उतरने का फ़ैसला किया.
बीते रविवार (तीन अक्टूबर) की रात साढ़े बारह बजे लखनऊ की सड़कों पर पैदल निकलने से शुरू हुआ उनका सिलसिला इस रविवार (10 अक्टूबर) को प्रधानमंत्री के क्षेत्र वाराणसी में किसान न्याय रैली तक पहुँचा है. प्रधानमंत्री के क्षेत्र में उम्मीद से कहीं ज़्यादा बड़ी भीड़ थी ज़रूर लेकिन यह भीड़ कांग्रेसी दावे जितनी भी नहीं थी.
प्रियंका के इस नए अंदाज़ पर वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार शरत प्रधान कहते हैं, “अभी तक जब प्रियंका की विज़िट होती थी तो लगता था कि वो सिर्फ़ देखने के लिए आईं हैं, लेकिन इस बार जो प्रियंका ने किया है वो एकदम इंस्टिंक्टिव काम है. वो लखनऊ से पुलिस को चकमा देकर निकल गईं और काफ़ी देर तक पुलिस उन्हें तलाशती रही. यह पहला मौक़ा था जब प्रियंका के अंदर जो अंदरूनी लीडरशिप क्वॉलिटी हैं, वो जागी और बाहर दिखी हैं.”

प्रियंका गांधी ने क़रीब 60 घंटे तक सीतापुर पीएसी गेस्ट हाउस में क़ैद रहकर यह दिखाने की कोशिश की है कि वे लोगों के लिए लड़ने का इरादा रखती हैं.

इसके बाद लखीमपुर खीरी हिंसा में मरने वाले 18 साल के किसान लवप्रीत सिंह के घर छोटे से अधबने कमरे में प्रियंका गाँधी ने लवप्रीत की बहन को गले से लगाया और चंद मिनटों की दूरी पर निघासन में पत्रकार रमन कश्यप के घर पहुँच कर पत्नी आराधना को सांत्वना दी.

इसके बाद वह बहराइच के मृतक किसान के परिवार वालों से मिलीं, बीच रास्ते में मीडिया को बयान देना नहीं भूलीं कि वह इस हिंसा में मारे गए बीजेपी कार्यकर्ताओं के परिवार वालों से भी मिलना चाहती थीं.

जब प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सीतापुर में गिरफ़्तारी के दौरान झाड़ू लगाने का मज़ाक़ उड़ाया तो प्रियंका ने वाल्मीकि बस्ती में झाड़ू लगाकर योगी सरकार को एक साथ किसान और दलित विरोधी ठहराने की कोशिश की. उनकी इन तस्वीरों को लेकर सोशल मीडिया पर ख़ूब चर्चा हुई.
यूपी की राजनीति पर नज़र रखने वालों का मानना है कि इन सबके ज़रिए एक हद तक तो शायद प्रियंका गांधी राजनीतिक छवि के खेल में विपक्ष के दूसरे नेताओं से बीस साबित हुई हैं. लेकिन सबसे अहम सवाल यही है कि क्या इससे कांग्रेस को यूपी में कोई फ़ायदा होगा?

शरत प्रधान कहते हैं, “प्रियंका के पास संगठन नहीं है लेकिन वह अकेले चल पड़ीं. जिनके पास कैडर है, वो घर में बैठे हुए हैं. अखिलेश यादव ने अपने आप को घर के बाहर कोर्ट अरेस्ट करवा कर औपचारिकता निभाई.”

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के पास मज़बूत संगठन नहीं है, अगर संगठन होता तो प्रियंका के एक सप्ताह की मेहनत का असर शायद कुछ और दिखता. लखीमपुर खीरी हिंसा मामले पर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और बहुजन समाज पार्टी की मायावती दोनों उतने मुखर नहीं दिखे हैं, जितनी प्रियंका दिखी हैं.


राजनीतिक विश्लेषकरतन मणि लाल कहते हैं, “प्रियंका गांधी की सक्रियता से जो मौजूदा समय में वास्तविक विपक्ष है, वह कमज़ोर होगा. अखिलेश यादव के पास संगठन भी है, भीड़ जुटाने की क्षमता है और अपनी छवि भी है, लेकिन अगर पिक्चर ऐसी बन गयी कि पूरा का पूरा विपक्ष का कैंपेन प्रियंका लीड कर रही हैं, तो पब्लिक परसेप्शन में, यही आएगा कि टक्कर तो प्रियंका ने ही दी और ऐसे में जो वास्तविक तौर पर टक्कर दे रहा है उसकी स्थिति कमज़ोर होगी.”
“लोग उनकी राजनीतिक सक्रियता के बारे में जानते हैं, वह दिल्ली से आती हैं और कुछ दिनों में फिर से वापस चली जाती हैं, आप पिछले दो सालों में उनकी निष्क्रियता देख लीजिए. वैसे भी उनकी सक्रियता का बहुत असर पड़ा तो वह शहरी क्षेत्र की सीटों पर ही दिखेगा.”

प्रियंका गांधी वाक़ई में पिछले सालों में बहुत सक्रिय नहीं रही हैं, लेकिन उन्हें भी मालूम है कि अब ज़्यादा देर नहीं किया जा सकता है, 2024 में नरेंद्र मोदी को चुनौती देने के लिए उन्हें अपनी पार्टी को उत्तर प्रदेश में हर हाल में मज़बूत करना होगा. इसलिए शायद वो एक स्ट्रीट फ़ाइटर जैसी छवि बनाने की कोशिश कर रही हैं. पर राजनीतिक मायरो का मानना है कि प्रियंका गांधी की मजबूती से कांग्रेस पार्टी जितनी भी वोट या सीटें प्राप्त करेगी उससे भाजपा को भी मजबूती मिलेगी क्योंकि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है ।

प्रियंका गांधी की राजनीति 100 सीटों तक ही सीमित है और वह अपना ध्यान इन्हीं सीटों पर फोकस कर रही है अगर कोई पार्टी उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने की स्थिति में है तो वह भाजपा के बाद समाजवादी पार्टी है लेकिन कांग्रेस पार्टी जितनी भी वोट प्राप्त करेगी वह समाजवादी पार्टी की होगी क्योंकि भाजपा की नाराज वोट समाजवादी की बजाए कांग्रेस पार्टी को चली जाएगी और जिसका सीधे तौर पर भाजपा को फायदा होगा अगर ऐसी स्थिति बनी रही तो निश्चित तौर पर आने वाली सरकार फिर एक बार भाजपा की बनेगी वैसे राजनीति में कुछ भी संभव हो सकता है अभी विधानसभा चुनाव को चार-पांच महीने रहते हैं तो ऐसी स्थिति में कुछ भी हो सकता है वैसे भाजपा कांग्रेस की मजबूती से अंदर ही अंदर खुश नजर आ रही है वैसे यह भी कहा जा रहा है कि जितना कांग्रेस मजबूत होगी उतना ही समाजवादी पार्टी पर दबाव बनेगा अगर इन दोनों पार्टियों की बात की जाए तो बाहर से चाहे एक दूसरे को कोसते हो लेकिन हार गंभीर मामले में दोनों पार्टियों का काफी गहरा तालुकात है लोग मानते हैं कि आने वाले दिनों में जितनी कांग्रेसी मजबूत होगी उतना ही समाजवादी पार्टी सीटों के लेनदन में समाजवादी पार्टी पर दबाव बनेगा

By DTI