नई दिल्ली डीटीआई न्यूज़ ।
पिछले 1 साल से कांग्रेस के बागी ग्रुप G-23 ग्रुप में कांग्रेसी हाई कमांड की नाक में दम कर रखा था और समय-समय पर गांधी परिवार द्वारा दिए गए फैसलों का जबरदस्त विरोध किया जाता रहा है लेकिन कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक के बाद एक बात तो स्पष्ट हो गई है कि पार्टी के विरोध में तैयार हुए जी-23 का अस्तित्व तकरीबन समाप्त हो गया है। एक-दो नेता जरूर अभी भी विरोध में झंडा लेकर खड़े हैं। लेकिन ज्यादातर नेता या तो पार्टी के साथ आ गए हैं या फिर जी-23 से किनारा कर बहुत जल्द पार्टी की मुख्यधारा के साथ आ जाएंगे। पार्टी की सोची-समझी रणनीति के तहत विरोध में गए नेताओं को पूरी तरीके से अलग-थलग कर दिया गया है। शनिवार को आयोजित हुई बैठक में जी-23 के बिखराव का सबूत भी दिखा।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री कहते हैं कि देश की इतनी बड़ी पार्टी महज 23 नेताओं के विरोध करने से न तो खत्म हो सकती है न ही उसे कमजोर किया जा सकता है। उनके मुताबिक पार्टी ने बहुत सोची-समझी रणनीति के तहत विरोध करने वाले नेताओं के संगठन जी-23 को ही खत्म कर दिया। वह बताते हैं, जिस तरीके से गुलाम नबी आजाद को पार्टी में महत्वपूर्ण भूमिका दी जाने लगी इस गुट में फूट पड़ गई। यही वजह है कि गुलाम नबी आजाद ने शनिवार को आयोजित कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में न सिर्फ सोनिया गांधी में आस्था व्यक्त की, बल्कि उनके अध्यक्ष पद पर बने रहने पर कोई सवालिया निशान तक नहीं उठाया। इसी तरीके से आनंद शर्मा को भी पार्टी ने अपने खेमे में करने के लिए कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों के साथ आगे बढ़ाने की तैयारियां की। कांग्रेस नेता मुकुल वासनिक को कांग्रेस की कई अहम कमेटियों में स्थान देकर वापस लाया गया।
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी कांग्रेस के नाराज नेताओं में शामिल थे। लेकिन जिस तरीके से कांग्रेस पार्टी ने उनके बेटे दीपेंद्र हुड्डा को उत्तर प्रदेश की स्क्रीनिंग कमेटी में न सिर्फ सदस्य बनाया, बल्कि लखीमपुर मामले में प्रियंका गांधी के साथ एक बहुत बड़े चेहरे के तौर पर भी सामने रखा। पूरे देश और दुनिया में प्रियंका गांधी के साथ-साथ अगर कोई चेहरा इस विरोध-प्रदर्शन में साथ रहा तो वह असंतुष्ट कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बेटे दीपेंद्र हुड्डा ही हैं। ऐसे में दीपेंद्र हुड्डा को इतनी तवज्जो देकर कांग्रेस ने भूपेंद्र हुड्डा को मनाया और बल्कि भूपेंद्र हुड्डा को कांग्रेस की अहम कमेटियों में जिम्मेदारी देकर वापस भी लेकर आए।
पूर्व केंद्रीय मंत्री वीरप्पा मोइली पहले ही इस बात को कह चुके हैं कि उन्होंने कांग्रेस में सुधार के लिए कुछ नेताओं के कहने पर एक कागज पर दस्तखत जरूर किए थे, लेकिन उनकी मंशा कांग्रेस को खत्म करने या बर्बाद करने की बिल्कुल नहीं थी। वीरप्पा मोइली ने कांग्रेस पार्टी और सोनिया गांधी में आस्था जताते हुए यह कहा था कि अब जो नेता जी-23 के साथ हैं वह सिर्फ अपना ही देख रहे हैं। उन्हें सिर्फ स्वार्थी ही कहा जा सकता है। मोइली ने नाराज नेताओं के इस संगठन से पूरी तरीके से किनारा कर लिया है।
लखीमपुर कांड में जिस तरीके से कांग्रेस ने आक्रामक रुख अख्तियार किया, उसे लेकर कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं में शामिल पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा ने न सिर्फ कांग्रेस के आक्रामक रवैये की तारीफ की, बल्कि उसका खुलकर समर्थन भी किया। इसी तरह लखीमपुर कांड में जब प्रियंका गांधी और राहुल गांधी राष्ट्रपति से मिलकर ज्ञापन देने गए, तो असंतुष्ट नेताओं में शामिल रहे गुलाम नबी आजाद उनके साथ थे।
कांग्रेस से जुड़े सूत्रों का कहना है कि शनिवार को आयोजित होने वाली कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक से पहले कांग्रेस के एक बड़े नेता को ज्यादा से ज्यादा असंतुष्ट नेताओं को अपने साथ लाने की जिम्मेदारी दी गई थी। इसमें बहुत हद तक कांग्रेस को सफलता भी मिली। हालांकि संदेश स्पष्ट किया गया था, जो नेता कांग्रेस विचारधारा और कांग्रेस के संविधान के अनुरूप अपनी आस्था नहीं प्रकट करता है, उसे किसी भी तरीके से मनाने की आवश्यकता नहीं है।