नई दिल्ली,डीटी आई न्यूज़।पाँच राज्यों में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले है, जिनमें उत्तर प्रदेश सबसे बड़ा राज्य है. जहाँ एक दिन पहले ही अमित शाह को पश्चिम उत्तर प्रदेश की कमान सौंपी गई थी.

लेकिन गुरु नानक देव के प्रकाश पर्व के दिन प्रधानमंत्री मोदी ने इसकी घोषणा कर सबको चौंका दिया. सोशल मीडिया पर इसके साथ ही ‘मास्टर स्ट्रोक’ ट्रेंड कर रहा है जिनमें दावा किया जा रहा है कि ये फ़ैसला एक मास्टर स्ट्रोक है.
इस वजह से अब इस टाइमिंग में पंजाब एंगल भी जुड़ गया है.

सालों से बीजेपी को कवर कर रही, अंग्रेज़ी अख़बार द हिन्दू की पत्रकार निस्तुला हेब्बार कहती हैं, “मोदी सरकार के इस फैसले के पीछे उत्तर प्रदेश और पंजाब दोनों कारण हैं. जाहिर है उत्तर प्रदेश चुनाव पर असर मुख्य वजह है. लेकिन पंजाब भी कई लिहाज से बीजेपी के लिए अहम राज्य है.”

पंजाब एंगल को विस्तार से समझाते हुए निस्तुला कहती हैं, ” पंजाब भारत सीमा से लगा राज्य है. बहुत सारे खालिस्तानी ग्रुप अचानक से सक्रिय हो गए हैं. ऐसे में चुनाव से पहले कई गुट पंजाब में एक्टिव हैं जो मौके का फ़ायदा उठा सकती हैं.”

” जब बीजेपी और अकाली दल का गठबंधन हुआ था, उस वक़्त दोनों दलों के शीर्ष नेता लाल कृष्ण आडवाणी और प्रकाश सिंह बादल की सोच ये थी कि अगर सिखों की नुमाइंदगी करने वाली पार्टी (अकाली दल) और ख़ुद को हिंदू के साथ जोड़ने वाली पार्टी (बीजेपी) साथ में चुनाव लड़े तो राज्य और देश की सुरक्षा के लिहाज से ये बेहतर होगा. इस वजह से सालों तक ये गठबंधन चला.”

“पंजाब लॉन्ग टर्म के लिए बीजेपी के लिए बहुत अहम है. 80 के दशक की चीज़ें दोबारा से वहाँ शुरू हो जाए, ऐसा कोई नहीं चाहता. इस वजह से भी केंद्र सरकार ने ये फैसला लिया.”

नए कृषि क़ानून की वजह से अकाली दल ने पिछले साल बीजेपी का साथ छोड़ा और एनडीए से अलग हो गए थे. अकाली दल, बीजेपी की सबसे पुरानी साथी थी.
लेकिन अचानक एक साल बाद मोदी सरकार को पंजाब की जनता और अपने पुराने दोस्त अकाली दल की याद क्यों आई?

आरएस घुमन, चंडीगढ़ के सेंटर फॉर रिसर्च इन रूरल एंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट में प्रोफ़ेसर हैं. कृषि, अर्थशास्त्र और पंजाब की राजनीति पर इनकी मज़बूत पकड़ है.

प्रोफ़ेसर आरएस घुमन कहते हैं, ” देर आए दुरुस्त आए. ये फैसला 700 किसानों की बलि देने के बाद आया है. मोदी सरकार के नए कृषि क़ानून ख़ुद रद्द नहीं किया, उनको किसानों के ग़ुस्से की वजह से ऐसा करना पड़ा. उत्तर प्रदेश के चुनाव नज़दीक है और पंजाब में भी.”

घुमन आगे कहते हैं, “इस फैसले के बाद भी बीजेपी को पंजाब में कुछ नहीं मिलने वाला. अकाली के साथ गठजोड़ होता तो कुछ राजनीतिक फ़ायदा मिल सकता था. लेकिन पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ आने से भी अब बीजेपी की दाल नहीं गलने वाली.”

गौरतलब है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बीजेपी के साथ गठबंधन के संकेत देते हुए कहा था कि केंद्र सरकार को कृषि क़ानून पर दोबारा विचार करना चाहिए.

By DTI