हरीश रावत: आशा कुमारी को पंजाब प्रभारी पद से हटाने के बाद कांग्रेस ने उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को प्रदेश प्रभारी की कमान दी। रावत के पंजाब आते ही कांग्रेस की अंतरकलह की शुरूआत हुई। कैबिनेट मंत्री पद से इस्तीफा देकर कांग्रेस की सक्रिय राजनीति से दूर चल रहे नवजोत सिंह सिद्धू को रावत ने हवा दी। जिसके बाद सिद्धू ने कैप्टन के खिलाफ ट्वीट वार शुरू किया।
धीरे-धीरे कैबिनेट मंत्री भी कैप्टन को पद से हटाने के लिए बगावत पर उतर आये। अंततः कैप्टन ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और मुख्यमंत्री की कमान चरणजीत सिंह चन्नी ने संभाली।
नवजोत सिंह सिद्धू: सिद्धू ने पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ विद्रोह किया और बाद में वह मुख्यमंत्री पद की दौड़ में एसा शामिल हुए कि उन्होंने मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के खिलाफ भी खुल कर बोलना शुरू कर दिया। सिद्धू खुल कर कहते थे के वह दर्शनीय घोड़ा नहीं बनेंगे और ईंट से ईंट बजा देंगे। चन्नी और सिद्धू की खींचतान कांग्रेस को ले डूबी।
चरणजीत सिंह चन्नी: मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने 111 दिनों की सरकार में सबसे ज्यादा फोकस अपनी पर्सनाल्टी डेवलपमेंट पर किया।
हरीश चौधरी: कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी हरीश चौधरी चन्नी और सिद्धू के बीच की दूरी को कम नहीं कर पाए। वह हमेशा ही मुख्यमंत्री के साथ खड़े नजर आए। लगातार यह संकेत मिल रहे थे कि शहरी वोटबैंक कांग्रेस से दूर जा रहा है। हिंदू दूर हो रहा है लेकिन वह इसे संभालने में विफल साबित हुए।
पंजाब के एमपी भी नहीं कम विलन
मनीष तिवाड़ी,रवनीत बिट्टू,परनीत कौर,जसबीर डिम्पा, गुरमीत औजला ने भी कांग्रेस की नैया डुबाने में अपना पूरा योगदान दिया क्योकि यह नेता भी अपनी जुबान पर कंट्रोल नही रख पाए ,चुनाव होने तक यह सभी या तो पंजाब सरकार को कोसते रहे या हाई कमान को । महारानी परनीत कौर तो शरेआम अपने पति कैप्टन अमरिंदर का साथ देती रही लेकिन हाई कमान इनके खिलाफ कोई करवाई नही कर पाई जिसका खामियाजा कांग्रेस को पंजाब में भुगतना पड़ा।